‘सेक्टर 36’ रिव्यू: विक्रांत मैसी और दीपक डोबरियाल की दमदार परफॉर्मेंस के साथ एक प्रभावी थ्रिलर

TeamHU: नेटफ्लिक्स की नई फिल्म ‘सेक्टर 36’ में विक्रांत मैसी और दीपक डोबरियाल की परफॉर्मेंस ने दर्शकों को हिला कर रख दिया है। विक्रांत का किरदार इस फिल्म में उनके पुराने स्वीट-सिंपल किरदारों से बिल्कुल अलग है, जो एक साइकोपैथिक सीरियल किलर के रूप में आपके रोंगटे खड़े कर देता है। दूसरी ओर, दीपक डोबरियाल ने एक ईमानदार, लेकिन सिस्टम में एडजस्ट हो चुके पुलिसवाले के रूप में अपनी छाप छोड़ी है।

कहानी की गहराई और किरदारों की परतें

फिल्म की कहानी एक स्लम और एक आलीशान कोठी के बीच बंटे दो संसारों के इर्द-गिर्द घूमती है। एक दिन स्लम के नाले से एक जला हुआ हाथ बरामद होता है, जिससे पूरी कहानी खुलने लगती है। दीपक डोबरियाल का किरदार, इंस्पेक्टर राम चरण पांडे, इस केस को हल करने की कोशिश में जुट जाता है।

विक्रांत मैसी का किरदार प्रेम, जो एक नौकर के रूप में काम करता है, धीरे-धीरे अपनी हिंसक प्रवृत्ति के साथ दर्शकों के सामने आता है। फिल्म की सबसे बड़ी ताकत है इसके किरदारों की परतें—प्रेम जहां अपनी क्रूरता से आपको झकझोरता है, वहीं अपने परिवार के प्रति उसका नरम रवैया आपको असमंजस में डाल देता है। पांडे भी अपनी निजी जिंदगी में एक पिता हैं, जिनकी बेटी कहानी का अहम हिस्सा बनती है।

फिल्म की कमियां और खूबियां

हालांकि, फिल्म का इमोशनल पक्ष बहुत प्रभावी है, लेकिन इसकी क्राइम थ्रिलर के तौर पर कुछ कमजोरियां भी हैं। पुलिस की जांच और क्राइम के तकनीकी पहलुओं को ज्यादा विस्तार से नहीं दिखाया गया है। फिल्म 2006 के निठारी कांड से प्रेरित है, लेकिन इसकी पटकथा गहराई में जाने से बचती नजर आती है। कई घटनाएं बहुत जल्दी और आसानी से घटित होती हैं, जिससे सस्पेंस का असर कम हो जाता है।

फिर भी, ‘सेक्टर 36’ का माहौल और किरदारों के बीच के संवाद कहानी को बांधे रखते हैं। अगर पटकथा और गहराई में जाती, तो यह फिल्म और भी अधिक प्रभावी हो सकती थी।

अभिनय की शानदार प्रस्तुति

फिल्म की सबसे बड़ी उपलब्धि विक्रांत मैसी और दीपक डोबरियाल की दमदार परफॉर्मेंस है। विक्रांत ने अपने किरदार के मनोवैज्ञानिक पहलुओं को बखूबी निभाया है, जबकि दीपक डोबरियाल का पुलिसवाला किरदार बहुत ही रियलिस्टिक और ईमानदार लगता है।

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