किराये की कोख: भारतीय सरोगेसी का काला धंधा

Team Hu: कुछ साल पहले, किराये की कोख या सरोगेसी की अवधारणा सामान्य थी, जहां महिलाएं 9 महीने तक किसी और के बच्चे को अपनी कोख में रखती थीं और डिलीवरी के बाद भुगतान प्राप्त करती थीं।

समय के साथ, इस व्यवस्था में खामियां आने लगीं और विदेशी जोड़े ‘सरोगेसी पर्यटन’ के लिए भारत आने लगे। नतीजतन, भारत को ‘बेबी फैक्टरी’ के नाम से पहचाना जाने लगा। ऐसे हजारों क्लीनिक उभर आए, जो गरीब महिलाओं की मजबूरी का फायदा उठा रहे थे। सरोगेसी के लिए मानव तस्करी की घटनाएं भी सामने आईं।

 

सरकार ने इस गोरखधंधे को रोकने के लिए कानून बनाए, लेकिन इसके बावजूद यह अवैध धंधा अभी भी जारी है। एक सरोगेट मां की खोज मुझे गुरुग्राम के एक फर्टिलिटी क्लिनिक तक ले गई, जहां मैंने अपना नाम ‘दिव्या’ बताया।

क्लिनिक में डॉक्टर से मिलने से पहले, कोऑर्डिनेटर ने बताया कि वे 10 से 15 महिलाओं की जांच कर एक स्वस्थ सरोगेट चुनते हैं। उन्होंने यह भी आश्वासन दिया कि बच्चे के जन्म के तुरंत बाद मां और बच्चे को अलग कर दिया जाता है, जिससे सरोगेट को बच्चे से कोई लगाव न हो।

डॉक्टर के साथ बातचीत में, उन्होंने मेरी प्राथमिकताओं के अनुसार सरोगेट की व्यवस्था करने का आश्वासन दिया और बताया कि वे हरियाणा, बिहार, और यूपी की महिलाओं को प्राथमिकता देते हैं। इस पूरी प्रक्रिया में 18 लाख रुपये तक की लागत आती है, जिसमें सरोगेट की फीस, मेडिकल खर्च और अन्य खर्च शामिल होते हैं।

सरोगेसी के इस धंधे में एजेंट्स, डॉक्टर और क्लिनिक एक संगठित नेटवर्क के तहत काम करते हैं। अवैध सरोगेसी के दौरान किसी भी कानूनी दस्तावेज की मांग नहीं की जाती, जिससे कानून के पचड़े से बचा जा सके। सरोगेट के नाम पर फर्जी दस्तावेज तैयार किए जाते हैं और बच्चे के जन्म के बाद माता-पिता को बच्चा सौंप दिया जाता है।

सरोगेसी के लिए एक ऑनलाइन नेटवर्क भी सक्रिय है, जहां एजेंट्स सरोगेट्स की व्यवस्था करते हैं। ये एजेंट किसी भी कानूनी कागजी कार्रवाई से बचने के लिए सरोगेट को लेकर कोई दस्तावेजी साक्ष्य नहीं रखते, जिससे कानूनी कार्रवाई से बचा जा सके।

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