TeamHU : इस साल झारखंड हाई कोर्ट ने कई महत्वपूर्ण मामलों में अपने फैसले सुनाए, जो राज्य और देशभर में चर्चा का विषय बने। इन फैसलों ने न केवल न्यायपालिका की सक्रियता को रेखांकित किया, बल्कि झारखंड की सरकार और नागरिकों के जीवन पर भी प्रभाव डाला।
1. 31 साल पुराने हत्या के मामले में सभी अभियुक्त बरी
देवघर में 1993 में मात्र 200 रुपये के विवाद में नन्नू लाल महतो की हत्या कर दी गई थी।
1997 में देवघर की निचली अदालत ने इस मामले में चार आरोपियों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी।
मामला झारखंड बनने से पहले पटना हाई कोर्ट में लंबित था और बाद में झारखंड हाई कोर्ट में स्थानांतरित हुआ।
हाई कोर्ट ने न्याय मित्र नियुक्त कर मामले की सुनवाई की और सभी अभियुक्तों को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया।
2. सीएम हेमंत सोरेन को जमानत
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को ईडी ने जमीन घोटाला मामले में 31 जनवरी को गिरफ्तार किया था।
निचली अदालत से राहत न मिलने पर उन्होंने झारखंड हाई कोर्ट का रुख किया।
जस्टिस आर. मुखोपाध्याय की बेंच ने प्रथम दृष्टया मामले को कमजोर मानते हुए सोरेन को जमानत प्रदान की।
ईडी ने इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के फैसले को सही ठहराया।
3. निजी कंपनियों में 75% आरक्षण पर रोक
झारखंड सरकार ने राज्य की सभी निजी कंपनियों में 40,000 रुपये तक के पदों पर स्थानीय लोगों के लिए 75% आरक्षण का कानून पारित किया था।
कई निजी कंपनियों ने इस कानून को चुनौती देते हुए हाई कोर्ट में याचिका दाखिल की।
सुनवाई के बाद हाई कोर्ट ने इस कानून के लागू होने पर रोक लगा दी। यह फैसला राज्य सरकार के लिए बड़ा झटका साबित हुआ।
4. धनबाद में कोयला चोरी की सीबीआई जांच का आदेश
धनबाद में कोयला चोरी और उसमें पुलिस अधिकारियों की संलिप्तता का मामला हाई कोर्ट में उठाया गया।
याचिका में आरोप लगाया गया था कि एक सिंडिकेट के तहत कोयला चोरी की जाती है, जिसमें पुलिस, स्थानीय नेता और अपराधी शामिल हैं।
हाई कोर्ट ने मामले की गंभीरता को देखते हुए इसकी जांच सीबीआई से कराने का आदेश दिया।
इन फैसलों का महत्व
इन फैसलों ने झारखंड में न्याय की प्रक्रिया को तेज किया और प्रशासनिक तंत्र में सुधार का संकेत दिया।
लंबित मामलों का निपटारा: 31 साल पुराने हत्या के मामले में सभी अभियुक्तों को बरी कर देना, न्यायिक प्रक्रिया में तेजी लाने का उदाहरण है।
सरकार की नीतियों पर संतुलन: 75% आरक्षण पर रोक से निजी क्षेत्र और सरकार के बीच नीतिगत संवाद की आवश्यकता को बल मिला।
भ्रष्टाचार पर सख्ती: हेमंत सोरेन और कोयला चोरी मामलों में हाई कोर्ट के आदेशों ने प्रशासनिक और राजनीतिक जवाबदेही को सुनिश्चित किया।