Praveen Sharma/Hu: सोमवार को आंदोलनरत सहायक पुलिसकर्मी राजभवन को घेराव करने जा रहे थे। पुलिस के द्वार मोरहाबादी मैदान में ही पुलिसकर्मीयो को रोक दिया गया। अपनी मांगों के समर्थन में सहायक पुलिसकर्मी मोरहाबादी मैदान में आंदोलन जारी रखें हैं। सोमवार को तय कार्यक्रम के तहत मोरहाबादी मैदान से राजभवन घेराव के लिए निकले हुए थे। लेकिन भारी सुरक्षा बंदोबस्त के बीच उन्हें मोरहाबादी मैदान में ही रोक दिया गया।
सहायक पुलिस कर्मियों को जब यहां रोका गया तो विरोध में सभी सरकार और प्रशासन के खिलाफ जमकर नारेबाजी करने लगे। सहायक पुलिसकर्मियों ने कई बार बैरिकेडिंग को धकेलते हुए आगे बढ़ाने की कोशिश भी कि, लेकिन प्रशासन ने उन्हें वहीं रोक दिया। सिटी एसपी राजकुमार मेहता सहायक पुलिस कर्मियों को काफी समझाने का प्रयास किये, लेकिन सहायक पुलिसकर्मी राजभवन घेराव के लिए वहीं अड़े रहे। आपको बता दें की सहायक पुलिस के जवानों का आंदोलन मोरहाबादी मैदान में बीते दो जुलाई से शुरू किया गया है, जो 13वें दिन यानि की आज भी जारी है। बारिश होने के बाद भी कई जिलों से आए सहायक पुलिसकर्मी मोरहाबादी मैदान में टेंट लगा कर आंदोलन कर रहे हैं।
लंबे समय से चल रहा आंदोलन
सहायक पुलिसकर्मियों ने अपनी पीड़ा बताते हुए बोला कि हमलोग लंबे समय से आंदोलन कर रहे हैं। लेकिन सरकार के कान में अभी तक हमारी आंदोलन की जू भी नहीं रेंग रही है। अभी सभी अपनी मांगों को लेकर अड़े हुए हैं। इससे पहले सहायक पुलिस कर्मियों ने आठ जुलाई को विशेष सत्र के दौरान विधानसभा के बाहर अपनी मांगों को लेकर धरना प्रदर्शन किये थे। सहायक पुलिस कर्मियों का कहना है की रघुवर दास की सरकार के दौरान 2017 में राज्य के 12 नक्सल प्रभावित जिलों में विधि व्यवस्था दुरुस्त रखने में सहायता के लिए इन सहायक पुलिस की नियुक्ति किया गया था। तब उन्हें दस हजार रुपये महीने का दिया जाता था। सहायक पुलिसकर्मियों की मानें तो आज भी उन्हें दस हजार रुपये ही दिया जाता है।
नौकरी को परमानेंट करने की मांग
मोरहाबादी मैदान में आंदोलन के लिए जुटे सहायक पुलिसकर्मियों ने बताया कि वो लोग पिछले सात वर्षों से दस हजार रुपए के मासिक मानदेय पर नौकरी करते या रहे हैं। दस हजार रुपये में परिवार का पालन पोषण करना बेहद ही मुश्किल रहता है। झारखंड में पुलिस जवानों की कमी है। उनकी मांग है, कि उनकी सेवा को पुलिस सेवा में समायोजित कर दिया जाए। उन्होंने बताया कि सेवा को परमानेंट करने की मांग को लेकर आंदोलन की शुरुआत किया गया हैं। उनका कहना है कि अनुबंध के खत्म हो जाने के बाद उनके पास कुछ करने के लिए नहीं बचेगा। पूर्व की सरकार ने आश्वासन दिया था कि तीन साल तक की ड्यूटी के बाद उन्हें परमानेंट किया जाएगा। लेकिन इस संबंध में सरकार ने कोई प्रक्रिया नहीं शुरू कीया है, इसलिए उनका आंदोलन जारी रहेगा।